Image Source : NASA/JPL-Caltech ''इस नुक्ते(बिंदु) को दोबारा देखिए! हम यहीं हैं, ये हमारा घर है, हमारी पृथ्वी! यहीं वो लोग रहते हैं जिन्हें आप जानते हैं,प्यार करते हैं या जिनको आप ने कभी देखा है,नाम सुना है. आज तक जो भी इंसान हुए हैं उनकी जिंदगी यहीं गुजरी है।सूर्य की किरण में थमे हुए धूल के इसी कण पर हमारी तमाम खुशियाँ और गम ,हजारों महान् धर्म,विचारधाराएं , बड़ी-बड़ी अर्थव्यवस्थाएं , हर शिकारी और शिकार ,घुमक्कड़ ,सारे हीरो और कायर , सभ्यताएं बनाने वाले और सभ्यताएं मिटाने वाले ,सारे राजा और किसान,प्यार करने वाले सभी जोड़े ,सारे माता-पिता,बच्चे,नये अविष्कार करने वाले,सही राह दिखाने वाले शिक्षक,हर भ्रष्टाचारी नेता,सारे संत और पापी,वो सब जो हमारी जाति में पैदा हुए हैं उनकी जिंदगी यहाँ गुजरी है। अनन्त ब्रह्मांड में धूल के कण बराबर एक ग्रह पर , इस बहुत बड़े Cosmos में पृथ्वी की जगह बहुत मामूली है। फिर भी जरा खून की उन नदियों के बारे में सोचिए जो कुछ जनरलों और राजाओं ने सिर्फ इसलिए बहा दीं ताकि जंग में जीत कर वो इस तिनके जैसी पृथ्वी के माम
A mysterious underwater geometric circular pattern measuring approximately 2m in diameter has been a huge enigma since 1995 when it was first observed by a group of divers on the seabed of Japan's Amami-Oshima Island. These beautiful ornate symmetrical patterns came and went but nearly for a decade no one knew the phenomena behind it- whether it was created by an organism or whether it was just natural. For the first time in 2011, scientists identified a small pufferfish Torquigener sp. (Tetraodontidae), approximatelythe 120 mm in size creating these structures on the seabed with fine sand particles. It was the male doing all the hard work to impress the female. According to a study published by Hiroshi Kawase, Yoji Okata & Kimiaki Ito in the journal Scientific Reports, the males laboriously flap their fins while swimming linearly and then swim at various angles in a radial direction from the outside of the circle to the inside forming radially aligned peaks and valleys